भारत के सर्वश्रेष्ठ वास्तुकला मस्जिद
भारत विविधता की भूमि है। देश में गवाही के लिए बहुत सी चीजें उपलब्ध है जो इसके ऐतिहासिक साक्ष्यों के रुप में मौजूद है। भारत एक ऐतिहासिक भूमि शुरु से ही रहा है। यहां ना केवल हिंदू धर्म बल्कि सिख, ईसाई और इस्लाम धर्म को भी एक समान मान्यता प्राप्त है वो भली-भाती फलीभूत हुए हैं। भारत में जहां एक और हिन्दू धर्म को प्रदर्शित करते हुए ऐतिहासिक स्थल, साक्ष्य, इमारते, पौराणिक मंदिर मौजूद हैं। ठीक उसी तरह यहां मुस्लिम धर्म को समर्पित कई मस्जिद ऐतिहासिक रुप से विराजित है। जो ना केवल एक धार्मिक स्थल के रुप में पहचाने जाते हैं बल्कि भारत के ऐतिहासिक स्थल के रुप में भी विख्यात हैं। यहां हिंदूओं के बहुत सारे मंदिर और पवित्र स्थान हैं, वहीं कई मस्जिद भी हैं जिनमें महान वास्तुकला निहित है। भारत में हर धर्म की ऐतिहासिक इमारतों का खजाना भरा हुआ है यहां की मशहूर मस्जिदें। अपनी खूबसूरत शिल्पककला, वास्तुरकला और कलाकारी के लिए इनको जाना जाता है और यहां सालभर पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है। मस्जिद खुदा की इबादतगाहें हैं। मस्जिद, मुस्लिम समुदाय द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला वो स्थान है जहां समुदाय के लोग नमाज़ अदा कर अपने भगवान को याद करते हैं। भारत में बनी इन मस्जिदों की शैली बड़ी बेहतरीन है । अगर ऐतिहासिक तथ्यों पर नज़र डालें तो मिलता है कि ये मस्जिदें मुग़लों से प्रेरित हैं। मस्जिदों को बनाने के पीछे हुकूमतों और सल्तननतों के ईमान काम करते रहे हैं। हिंदुस्तान में मस्जिदों का इतिहास सीधे मुगलकाल से जाकर जुड़ता है। कई मुगल शासकों ने भारत में अद्भुद वास्तुकला का परिचय देते हुए मस्जिदों का निर्माण कराया था। जहां मुस्लिम धर्म के लोग सिर नवा कर सजदा करते हैं। मुगलों का शासनकाल भारत की स्था पत्यम कला का स्वमर्ण-युग माना जाता है। उनके शासनकाल में कई खूबसूरत इमारतों, स्तूसपों का निर्माण किया गया। उन्हीं के काल में निर्मित मस्जिदें आज भी स्थाकपत्यस कला का बेजोड़ नमूना मानी जाती हैं। यह मस्जिदें न केवल भारत के इतिहास की कहानी बयां करती हैं बल्कि वास्तुकला का भी बेजोड़ नमूना भी हैं। ये मस्जिदें आपको इतिहास में पीछे ले जाएंगें। यहां हम आपको भारत की कुछ सबसे बेहतरीन मस्जिदों की जानकारी दे रहे। जो न केवल दुनिया में अपने बड़े आकारों के लिए जानी जाती है, बल्कि अपनी खूबसूरत मुगलकालीन वास्तु कला और शिल्पअ के दम पर पूरे एशिया और विश्वज में अपनी खास जगह रखती हैं।
जामा मस्जिद, दिल्ली
भारत की सबसे बड़ी मस्जिद और सबसे लोकप्रिय मुस्लिम धार्मिक स्थल के रूप में विख्यात भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित, जामा मस्जि है। यह आपकी सूची से एक अतुल्नीय स्थल है। इस मस्जिद का निर्माण मुगल शासक शाहजहां ने ताजमहल के निर्माण के बाद कराया था। दिल्ली की जामा मस्जिद भारत की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है। इस विशाल मस्जिद का निर्माण 1650 से 1656 तक हुआ। यह मस्जिद मुगलकाल की बेहद खूबसूरत कलात्मक शैली में बनी हुई है। यह मस्जिद 261 फीट लंबी और 90 फीट चौड़ी है। मस्जिद में चार भव्य टावर, दो मीनार और तीन विशाल प्रवेश द्वार शामिल हैं। इस मस्जिद को बनाने में पूरे 6 साल लगे और उस जमाने में तकरीबन 10 लाख रुपये खर्चा आया। बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से बनी यह मस्जिद काफी भव्य और खूबसूरत दिखाई देती है।मस्जिद की मंजिल काले और सफेद पैटर्न में फैली हुई है। यह भारत की समग्र संस्कृति के रूप में प्रतिनिधित्व करता है और दुनिया भर के लोगों से विशेष रूप से ईद के दौरान ध्यान आकर्षित करता है।। पुरानी दिल्ली में स्थित यह मस्जिद लाल और संगमरमर के पत्थरों से बनीं हुई है। ऐतिहासिक लालकिले से महज 500 मी. की दूरी पर स्थित भारत की बड़ी मस्जिदों में से एक है। इस मस्जिद के शाही इमाम के निर्देश देश भर के मुस्लिम समुदाय पर खास प्रभाव रखते हैं। इसलिए दिल्ली की जामा मस्जिद मुस्लिम समुदायों के लिए बुहत खास है साथ ही यह भारत की बेहतरीन वास्तुकला की साक्षी भी है।
मक्का मस्जिद, हैदराबाद
मक्का मस्जिद भारत की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है और इसका निर्माण हैदराबाद में कुतुब राजवंश के मुहम्मद कुली कुतुब शाह के 5वें शासक ने किया था। इस मस्जिद के निर्माण की शुरुआत 1617 में मुहम्मद कुली क़ुतुबशाह ने की थी लेकिन इसको पूरा औरंगज़ेब ने 1684 में किया था। मस्जिद के निर्माण को पूरा करने में लगभग 77 साल और 8,000 कर्मचारी लगे। विरासत भवन पर्यटक स्थलों चौमाहल्ला पैलेस, लाद बाजार, और चारमीनार के नजदीक में स्थित है। मस्जिद के केंद्रीय कमान के निर्माण के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ईंटें पवित्र शहर मक्का, सऊदी अरब से लाई गईं थीं। इसलिए मस्जिद को मक्का का नाम दिया गया था। मस्जिद का मुख्य प्रार्थना कक्ष 75 फीट ऊंचा, 220 फीट चौड़ा और 180 फीट लंबा है और 10,000 लोगों को समायोजित करने के लिए यह बड़ा है। मस्जिद के वास्तुकला में एक गुंबद, पांच मार्गमार्ग, और अष्टकोणीय बालकनी से जुड़े चार मीनार शामिल हैं। मस्जिद की मुख्य संरचना ग्रेनाइट के एक टुकड़े से दो विशाल अष्टकोणीय स्तंभों के बीच बनाई गई है। माना जाता है कि मस्जिद आंगन के कमरे में से एक में इस्लामी पैगंबर मोहम्मद के बाल झुंड का खजाना है। तालाब के किनारे पत्थर के स्लैब से बने दो बेंच हैं और ऐसा माना जाता है कि जो कोई भी बेंच पर बैठता है वह फिर से इन बेंचों पर ही बैठता है। मुस्लिमों के बीच इसका विशेष धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ इसका ऐतिहासिक महत्व भी है और यह राज्य सरकार द्वारा संरक्षित एक धरोहर स्थल भी है। चूंकि मक्का मस्जिद चारमीनार और चौमहला महल जैसी ऐतिहासिक इमारत के पास है, इससे एक पर्यटन स्थल के रूप में इन्होंने काफी चर्चा हासिल की है। मक्का मस्जिद प्राचीन और अरबी वास्तु शिल्प के संगम के चलते पर्यटकों को आकर्षित करती है।
ताज-उल मस्जिद, भोपाल
ताज-उल मस्जिद का अर्थ मस्जिद का ताज है। यह एशिया में सबसे ऊंची मस्जिदों में से एक के रूप में प्रशंसित है। पाल स्थित ताजुल मस्जिदा पूरे भारत की शान है। इतिहासकारों की मानें तो यह दुनिया की तीसरी बड़ी मस्जिदों में से एक है। हालांकि कई इस्लामी वास्तुकला और शिल्प के जानकार इसके भव्य प्रांगण की वजह से इसे ही दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद मानते हैं। यह मस्जिद कुछ मुगल स्मारकों में से एक है जिसमें इसके निर्माण के पीछे एक महिला है। बाकी मोहम्मद खान की पत्नी भोपाल के नवाब शाहजहां बेगम ने निर्माण शुरू किया और फिर उनकी बेटी सुल्तान जहां बेगम ने जारी रखा। हालांकि, मस्जिद का निर्माण धन की कमी के कारण बंद कर दिया गया था और बाद में 1971 में निर्माण को भोपाल के अलामा मोहम्मद इमरान खान नदवी अजहर और मौलाना सईद हाशमत अली साहब ने फिर से शुरू किया और इसका निर्माण पूरा कराया। मस्जिद का मुख्य मोर्चा रंगीन गुलाबी है जो 18 मंजिल की ऊंचाई पर दो अष्टकोणीय मीनारों से ऊपर है और गेटवे उच्च भंडारित है। मुख्य प्रार्थना कक्ष में चार रिक्त आर्कवे और नौ खुलेपन हैं। इस मस्जिद की संरचना बेहद खूबसूरत और भव्य है। ताज उल मस्जिद में हर साल तीन दिन का इज्तिमा उर्स होता है। जिसमें देश के कोने-कोने से लोग आते हैं। यह मस्जिद गुलाबी रंग से रंगी हुई है और इसकी गुम्ब्दे सफेद रंग की है। मस्जिद वाला क्षेत्र दिल थाम लेने वाला होता है, खासकर उस दौरान जब रात में लाइट्स की रोशनी में यह चमक उठता है।
बारा इमाम्बारा, लखनऊ
बारा इमाम्बारा अवध के चौथे नवाब, असफ-उद-दौला द्वारा बनाई गई प्रसिद्ध मस्जिद है। इस मस्जिद को असफी इमाम्बारा भी कहा जाता है। इसका निर्माण 1785 को शुरू हुआ और 1791 को पूरा हो गया। इमारत लखनवी ईंटों के साथ बनाई गई है और केंद्रीय हॉल की छत को गर्डर के एक टुकड़े के बिना बनाया जाता है। मस्जिद परिसर में असफी मस्जिद, भुल भुलैया और चलने वाले पानी-धनुष के को भी शामिल किया गया है। दो विशाल प्रवेश द्वार मस्जिद के मुख्य प्रार्थना कक्ष में जाते हैं। मस्जिद में त्रि-आयामी भूलभुलैया में एक दूसरे के साथ 498 समान द्वार और सीढ़ियों की कई श्रृंखलाओं के माध्यम से एक दूसरे के साथ जुड़ने वाले 1,000 मार्ग हैं। मस्जिद की विशिष्टता चावल की भूसी से बने छत के कारण है। मस्जिद के वास्तुकार की मकबरा भी असफ़-उद-दौला की मकबरे के साथ मुख्य हॉल में स्थित है। यह मस्जिद शहर के तहसीलगंज में स्थित है। इस ऐतिहासिक संरचना को बनाने का काम 1839 में मोहम्मद अली शाह बहादुर द्वारा शुरू किया गया था, उनका उद्देश्य था इस मस्जिद को दिल्ली की जामा मस्जिद से बड़ा बनाने का। लेकिन अली शाह बहादुर कि मौत के बाद उनका यह सपना पूरा न हो सका, बाद में उनकी बेगम मल्लिका जहां साहिबा ने 1845 में मस्जिद को बनाने का काम पूरा हुआ।
नवाबों के शहर लखनऊ में स्थित बड़ा इमामबाड़ा जिसे भूलभुलैया भी कहते हैं, 17वीं शताब्दी की वास्तुकला और नवाबी ज़माने की इमारतों के सुरक्षा इंतज़ामात संबंधी निर्माण का बेहद शानदार नमूना है। लखनऊ के इस प्रसिद्ध इमामबाड़े का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है इस इमामबाड़े में एक अस़फी मस्जिद भी है जहां गैर मुस्लिम लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं है। इमामबाड़ा ऐतिहासिक द्वार का घर है, जो ऐसी अद्भुत वास्तुकला से परिपूर्ण है, जिसे देखकर आधुनिक वास्तुकार भी हैरत में पड़ जाते हैं।
जामा मस्जिद, आगरा
आगरा स्थित जामा मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने 1648 में अपनी प्यारी बेटी जहांआरा बेगम को श्रद्धांजलि देने के लिए किया था। मस्जिद में चौकोर आकार के कक्ष हैं जो गुंबदों के साथ ताज पहने जाते हैं। मस्जिद एक उठाए गए मंच पर और आंगन के लिए खुलने वाले पांच कमाना प्रवेश द्वार पर स्थित है। इसे जामी मस्जिद और जुमा मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। साधारण डिजाइन से बने इस मस्जिद का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से किया गया है और इसे सफेद संगमरमर से सजाया गया है। इसके दीवार और छत पर नीले पेंट का प्रयोग किया गया है। शहर के बीच में आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन के सामने स्थित यह मस्जिद भारत के विशाल मस्जिदों में से एक है। आकार में बेहद विशाल मस्जिदों में से एक इस मस्जिद का बरामदा बहुत ही बड़ा है। यह मस्जिद बहुत खूबसूरत भी है।
जमली-कामली मस्जिद, दिल्ली
जमली-कामली मस्जिद का निर्माण दिल्ली में 16 वीं शताब्दी के दौरान किया गया था। यह पर्यटकों के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल कुतुब मीनार के पास दिल्ली के मेहरौली में स्थित है। यह मस्जिद जमालली और कामली के दो कब्रिस्तानों का घर है। लाल बलुआ पत्थर का इस्तेमाल मस्जिद बनाने के लिए किया गया था और इसमें एक बगीचा, एक बड़ा आंगन, प्रार्थना कक्ष, पांच मेहराब है। केंद्रीय आर्क में एक गुंबद है। मस्जिद को मुगल वास्तुकला का विशेष रूप से झोरोखा प्रणाली माना जाता है। जमाली दरअसल एक सूफी संत थे और कमाली उनके दोस्त थे। मस्जिद का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है। यह मस्जिद ऐतिहासिक है, लेकिन इसे इतिहास में उस तरह जगह नहीं मिल पाई जैसी और मस्जिदों को मिली है। दिल्ली स्थित इस मस्जिद को सिंकदर लोधी के दौर में बनवाया गया था। महरौली के डीडीए पार्क में स्थित इस मस्जिद में बलबन के मकबरे के अवशेष भी हैं। इस मस्जिद की हाल ही में मरम्मत की गई है। इस मस्जिद के निर्माण में एक लंबा समय लगा। इसका निर्माण सिकंदर लोधी के शासनकाल में 1528 ईसवी में हुआ था और लगभग 1536 में हुमायूं के शासनकाल में खत्म हुआ। यह मस्जिद लाल पत्थर और संगमरमर से बनी है। इसे देखने के लिए कई पर्यटक रोज आते हैं।
मुगल सम्राट शाहजहां ने 1638 में जामा मस्जिद का निर्माण किया। यह राजस्थान के अजमेर के लोहखान कॉलोनी में स्थित है। मस्जिद मेवार के राणा के खिलाफ लड़ाई में उनकी जीत के संकेत के रूप में बनाया गया था। मस्जिद दीवारों पर फारसी शिलालेख भालू। मस्जिद प्राचीन सफेद संगमरमर से बना था और मस्जिद के प्रार्थना कक्ष को एक स्टार आकार में डिजाइन किया गया था।। इसे शाहजहां की मस्जिद भी कहा जाता है। तकरीबन 45 मीटर लंबी इस मस्जिद की 11 मेहराबें हैं। इस मस्जिद को बनाने के लिए मकराना से पत्थर मंगवाए गए थे। यह सफ़ेद संगमरमर की बनी हुई है। ठेठ मुगल शैली में बनाई गई यह मस्जिद वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। मान्यता है कि इस मस्जिद के गुंबद को बनाने के लिए जिस संगमरमर का प्रयोग हुआ है, वह उसी खदान से निकाला गया है, जिसमें से ताजमहल के लिए संगमरमर निकाला गया था। यह मस्जिद वास्तुकला का अद्बुद साक्षी है।
नागीना मस्जिद, आगरा
नगीना मस्जिद सम्राट शाहजहां द्वारा शाही परिवार की महिलाओं के लिए बनाई गई मस्जिदों में से एक है। इस मस्जिद का निर्माण शाहजहां ने 1653 में करवाया था। उस समय के दौरान एक निजी मस्जिद के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता था। आगरा स्थित यह मस्जिद संगमरमर की बनी बेहद सुंदर मस्जिद है। यह अपने मीनार रहित ढांचे तथा विषेश प्रकार के गुम्बद के लिए जानी जाती है। मस्जिद में तीन गुंबद और अच्छी तरह से सजाए गए मेहराब हैं। मस्जिद में 10।21 मीटर की चौड़ाई और 7।3 9 मीटर की गहराई है। मस्जिद एक उत्तम सजावट के साथ एक बहुत ही सरल लेकिन शानदार वास्तुकला है और एक रेखांकित आंगन का सामना करना पड़ता है।
जामा मस्जिद, श्रीनगर
जामा मस्जिद श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर) का निर्माण सुल्तान सिकंदर द्वारा 1400 ईस्वी में कराया गया था। ओल्ड यह मस्जिद पुराने बजार की सड़कों पर नाउथहा में स्थित है। यह मस्जिद सुंदर इंडो-सरसेनिक वास्तुकला में डिज़ाइन की गई है। मस्जिद में एक चौकोर उद्यान संलग्न है जो चारों तरफ चौड़े लेन से घिरा हुआ है। मस्जिद में एक सुंदर आंगन और 370 लकड़ी के खंभे हैं। सामुदायिक प्रार्थना समय के दौरान मुख्य प्रार्थना कक्ष 33,333 लोगों को समायोजित कर सकता है। इस मस्जिद के समीप ही एक खूबसूरत बगीचा और इबादत महल है। इसका निर्माण पैगम्बर मोहम्मद मोई-ए-मुक्कादस के सम्मान में करवाया गया था। इस मस्जिद में पैग़म्बर मुहम्मद का एक बाल रखा है, ऐसा माना जाता है और यह मस्जिद इसी कारण से विख्यात है। इस मस्जिद की वास्तु्कला मुगल और कश्मीरी स्थापत्य शैली का सही मिश्रण है, इस मस्जिद का निर्माण 17 वीं सदी में किया गया था जिसकी झलक स्पष्ट रूप से मस्जिद की वास्तुकला में दिखती है। श्रीनगर में यह मस्जिद मुस्लिमों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।
हाजी अली, मुंबई
हाजी अली मुंबई शहर में एक प्रसिद्ध मस्जिद है जिसकी बहुत मान्यता है। मुंबई के वरली के समुद्र तट पर स्थित यह मस्जिद अद्भुद वास्तुकला की साक्षी है। सभी समुदायों के लोग इस मस्जिद में जाते हैं क्योंकि ऐसा माना जाते है कि यदि आप मस्जिद में जाने इच्छा रखते हैं तो इसका उत्तर आपको वहां मिल जाएगा। अल्लाह के आशीर्वाद को पाने के लिए हर दिन 80,000 से अधिक भक्त दरगाह जाते हैं। हाजी अली दरगाह सय्यद पीर हाजी अली शाह बुखारी की स्मृति में बनाई गयी एक मशहूर मस्जिद एवं दरगाह है। यह दरगाह मुस्लिम एवं हिन्दू दोनों समुदायों के लिए विशेष धार्मिक महत्व रखती है। इस दरगाह की सबसे खास बात यह है कि अरब सागर की तेज लहरें जब समुद्र के बाहर तक आ जाती हैं, तब दरगाह तक पहुंचने का मार्ग तो पानी में डूब जाता है लेकिन दरगाह के भीतर पानी की एक बूंद भी प्रवेश नहीं कर पाती। इस मजार का नजारा बेहद दिलकश है। पानी की लहरों में बीच सफेद रंग से उज्जवल हाजी अली की दरगाह बेहद दर्शनीय लगती है। यह मुंबई का महत्वपूर्ण धार्मिक एवं पर्यटन स्थल भी है।
मोती मस्जिद, आगरा
आगरा में स्थित मोती मस्जिद का निर्माण शाहजहां द्वारा किया गया था। मोती का अर्थ है उर्दू में पर्ल होता है। मस्जिद को ऐसा नाम इसलिए दिया गया था क्योंकि यह दिन के उजाले में मोती की तरह चमकता था। शाहजहां ने अपने शाही अदालत के सदस्यों के लिए इस मस्जिद का निर्माण किया। मस्जिद में सफेद संगमरमर से बने तीन बल्बस डोम हैं और पैरापेट के साथ हिंदू-स्टाइल वाले डोमेड कियोस्क की एक श्रृंखला भी है। मस्जिद में सात बे हैं जो कि ऐलिस में अलग हो जाते हैं। यह मस्जिद एक बड़े मोती के मानिंद चमकता है। इसका निर्माण आगरा के किले के परिसर में शाही दरबार के लोगों के लिए किया गया था। ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों ने मास्को स्थित संत बासिल कैथिडरल का भ्रमण किया है, उन्हें इस बात का एहसास हो जाता है कि मोती मस्जिद के वास्तुशिल्प शैली की कुछ विशेषताएं उस कैथिडरल से काफी मिलती-जुलती है। मस्जिद के प्रांगण में किनारे-किनारे मेहराब बने हुए हैं। इसके छत पर सफेद संगमरमर से बने तीन गंबद हैं, जिनके दीवार लाल बलुआ पत्थर से बने हैं। इस पूरे इमारत का निर्माण सफेद संगमरमर से बेहद कलात्मक रूप से किया गया है। इस खूबसूरत सफेद मस्जिद के निर्माण में लगभग चार साल लग गए थे।