भारत में ग्रामीण पर्यटन
जब आप शहरी जीवन के व्यस्त कार्यक्रमों और शोर-शराबों से थक जाते हैं और उससे मुक्त होना चाहते हैं, शांति की तलाश में होते हैं तो आप गांव का रुख करना अवश्य समझते हैं। बच्चों के अवकाश हो या शहर के प्रदूषण और भीड़-भाड़ से दूर जाना हो तो हम ग्रामीण जीवन की ओर भागते हैं ताकि हम शांतिपूर्वक, स्वच्छ वातावरण में सांस ले सकें। भारत जो एक विभिन्न संस्कृतियों और सभ्याताओं की भूमि है। यहां शहर के साथ-साथ ग्रामीण जीवन भी पर्याप्त है। या यूं कहें कि भारत की नींव गावों पर ही निर्भर करती है। आज भारत के कई प्रांत आधुनिकता का चोला ओढ़ चुके हैं। शहरी जीवन की भाग-दौड़ में इतने व्यस्त हो गए हैं कि व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य तक का होश नहीं है। लेकिन भारत में कई गांव आज भी ऐसे हैं जो ना केवल भारत को गौरवांतित करते हैं बल्कि आज भी वहां भारत की सभ्यता, संस्कृति, परंपराएं विद्धमान है। भारत सरकार ने ग्रामीण पर्यटन की परिभाषा में स्पष्ट किया है कि कोई भी ऐसा पर्यटन, जो ग्रामीण जीवन, कला, संस्कृति और ग्रामीण स्थलों की धरोहर को दर्शाता हो, जिससे स्थानीय समुदाय को आर्थिक और सामाजिक लाभ पहुँचता हो, साथ ही पर्यटकों और स्थानीय लोगों के बीच संवाद से पर्यटन अनुभव के अधिक समृद्ध बनने की सम्भावना हो, तो उसे ‘ग्रामीण पर्यटन’ कहा जा सकता है। रोजमर्रा की नीरस जिन्दगी से फुर्सत के कुछ क्षण हमेशा मूड बेहतर बनाने का काम करते हैं। आमतौर पर लोग इस फुर्सत का इस्तेमाल यात्राएँ और नये स्थान खोजने के लिये करते हैं। परन्तु, लक्ष्य का चयन करने में समय और खर्च की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। व्यस्त पर्यटक मौसम के दौरान परम्परागत पर्यटक स्थलों पर आमतौर पर भारी भीड़ होती है। आज अधिकतर समाज शहरीकृत हो चुका है। ऐसे में ग्रामीण पर्यटन शहरी आबादी के बीच निरन्तर लोकप्रिय हो रहा है। इन ग्रामीण इलाकों में आज पर्यटन भली भांति फल –फूल रहा है। ना केवल स्वच्छ वातावरण के उद्देश्य से आज लोग गांवों का रुख कर रहे हैं बल्कि इन स्थलों पर व्याप्त ऐतिहासिक और प्राकृतिक चीजों का भी आनंद ले रहे हैं।
यदि आप भारत के अवांछित और अदृश्य हिस्सों जाना चाहते हैं तो आपको भारत के ग्रामीण जीवन का अवश्य आनंद लेना चाहिए। यहां आज भी प्रकृति की पूजा की जाती है। शहरों में जहां प्रकृति का दोहन होता है वहीं गावों में आप स्वंय को प्रकृति के करीब पाएगें। यहां गांवो के स्वादिष्ट और प्राकृतिक रस से भरपूर भोजन को आप जब चखेगें तो अपनी उंगलियां चाटने पर मजबूर हो जाएगें। इन व्यजनों की खासियत यह है कि यह आज भी मिट्टी के बर्तनों में तैयार किए जाते हैं। जीथ्वी पर जीवन जीने का नया ढंग, स्वाद, साधारण सुख और भारतीय गांवों की जीवंत संस्कृतियां आपकी भावना को फिर से जीवंत कर सकती हैं। यहां के लोक संगीत के ताल आपके दिल को प्रभावित कर सकते हैं। भारत के विभिन्न गांव अपनी विभिन्न संस्कृतियों, बोली-भाषाओं और पंरपराओं के साथ आपका स्वागत करने के लिए सदैव त्तपर रहते हैं। यदि आप परंपरागत ग्रामीण झोपड़ियों में रहने का अनुभव करने के इच्छुक हैं, तो इनका आनंद लेने के लिए आप भारत के इन गावों की सैर कर सकते हैं जहां की प्राकृतिक खूबसूरती और सभ्यता आपका मन मोह लेगी। हम आपको भारत के कुछ ऐसे ही गांवों और ग्रामीण पर्यटन के बारे में बता रहे हैं जहां जाने के बाद आपका वहां से आने का बिल्कुल मन नहीं करेगा।
कुंभलंगी, केरल
भारत के दक्षिण राज्य केरल में कोच्चि में एक छोटा और खूबसूरत द्वीप गांव कुंबलंगी हैं। यह भारत का पहला मॉडल पर्यटन गांव है। आप यहां आकर यह देखकर आश्चर्यचकित हों जाएगें कि यहां मछली पकड़ने के लिए एक मछली पकड़ने वाला गांव किस तरह पर्यवारणीय पर्यटन में बदल गया है। यह अविकसित गांव आज शहरों को भी फेल कर सकता है। आप यहां अलग-अलग घरों का अनुभव कर सकते हैं जिनमें से सभी भव्य तटीय व्यंजनों के लिए प्रसिद्ध हैं। प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता लिए यह गांव अपने आगंतुकों के लिए एक आदर्श स्थान प्रस्तुत करता है। आप यहां प्रसिद्ध चीनी मछली पकड़ने के जाल के साथ आनंद लेने के लिए कई अन्य जगहें जा सकते है। लोगों की पुरानी सांस्कृतिक विरासत और साधारण आजीविका आपको स्वदेशी मछली पकड़ने का अनुभव, देश की नाव पर परिभ्रमण और केकड़ा खेती का अनुभव आपमें एक अलग रगं भर देगा। यहाँ खेले जाने वाले मछली पालन के पिंजरे संस्कृति प्रकार निश्चित रूप से सभी पर्यटकों के लिए एक अतिरिक्त आकर्षण का केंद्र है। यदि आप कुछ रोमांच की तलाश मंए हैं, तो आप यहां केकड़ा खेती का आनंद ले सकते हैं साथ ही बैकवॉटर क्रूज की शैली "मैं पकड़ता हूं, आप फ्राइ करिए" की तकनीक अपना सकते हैं। आप गांव के हरे-भरे हरे धान के खेतों के साथ घूमने का आनंद लें सकते हैं। जहां प्रसिद्ध 'पोक्की' कार्बनिक चावल की खेती की जाती है। कुंबलंगी से निकटतम स्टेशन लगभग 25 किलोमीटर दूर एर्नाकुलम में है। कोचीन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, लगभग 46 किलोमीटर दूर है।
ज्योतिसार, कुरुक्षेत्र जिला, हरियाणा
ज्योतिसार गांव हरियाणा के पेहोवा रोड पर कुरुक्षेत्र शहर से करीब 12 किलोमीटर दूर है। यह गांव दो शब्द ज्योति और सार से मिलकर बना है। 'ज्योति' का अर्थ है प्रकाश और 'सर' अर्थ संपूर्ण है, यह गांव भगवद् गीता नामक हिंदुओं की पवित्र पुस्तक का जन्म स्थान है। दुनिया भर के पर्यटक इस पवित्र गांव में आते हैं, खासकर चंद्र और सूर्य ग्रहण के दौरान यहां अधिक संख्या में पर्यटन एवं श्रद्धालु आते हैं और इसके पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। ज्योतिसर वही जगह है जहां पर महाभारत के युद्ध से पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। उन्होंने अर्जुन को गीता के 18 अध्याय सुनाने के बाद युद्ध के लिए तैयार किया था। आज भी कुरुक्षेत्र में इस जगह को देखने कई पर्यटक आते हैं।
यह गांव ना केवल धार्मिक दृष्टि से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है बल्कि रोमांच पसंद करने वाले लोग भी इस गांव में आते हैं और इसका आनंद लेते हैं। इस गांव में रह कर आनंद लेने की मुख्य वजह यह है कि यहां मुख्य आकर्षण भगवान कृष्ण और हिन्दू महाकाव्य महाभारत के पात्र अर्जुन की संगमरमर छवि है जो बहुत ही सुंदर है। ज्योतिसर में पुराना वट वृक्ष है। कहा जाता है कि जब अर्जुन ने अपने ही बंधु बांधवों के खिलाफ शस्त्र उठाने से इनकार कर दिया। तब इसी पेड़ के नीचे श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के 18 अध्याय सुनाए थे। वट वृक्ष ही गीता की घटना का एक मात्र साक्षी है। गांव में कला और शिल्प की समृद्ध विरासत है। परंपरागत रंगीन पैटर, पारंपरिक मिट्टी के बर्तन, लकड़ी की नक्काशी और लोक चित्रकला के उपयोग के साथ दारी इस जगह की विरासत को चिह्नित करती है। आप पेपर बास्केट, हाथ कढ़ाई वाले वस्त्रों के विभिन्न प्रकार के हस्तशिल्प खरीद सकते हंथ और इस गांव का एक टुकड़ा वापस अपने घर वापस ले सकते हैं। इस छोटे से आध्यात्मिक स्वर्ग में जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर और फरवरी के बीच है।
ज्योतिसर वही जगह है जहां पर महाभारत के युद्ध से पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। उन्होंने अर्जुन को गीता के 18 अध्याय सुनाने के बाद युद्ध के लिए तैयार किया था। आज भी कुरुक्षेत्र में इस जगह को देखने कई पर्यटक आते हैं।
पोचंपल्ली, आंध्र प्रदेश
हैदराबाद से 50 किलोमीटर दूर, पोचंपल्ली, जिसे 'वीवर' शहर के नाम से जाना जाता है, भारत के दिलचस्प ग्रामीण पर्यटन स्थलों में से एक है। यदि आप रेशम 'इकत' के उत्साही प्रशंसक हैं, तो यह जगह आपके लिए एक एक आदर्श स्थल है। यहां विशेष रुप से रेशम के धागे से बने कपड़ेस साड़ियां आपको अपनी और आकर्षित करेगीं। पोचमपैल्ली को भारत की सिल्का सिटी के रूप में जाना जाता है, क्योंेकि यहां देश की सबसे उच्चि गुणवत्ता वाली रेशम की साडि़यों का निर्माण किया जाता है। रेशम के कीड़े को पालना, रेशन बनाना, उसे चिह्नित करने के अद्भुत तरीके आपको प्रसन्न करेंगे। यह जगह सुन्दर धान के वृक्षारोपण के बीच और ज्यादा सुंदर दिखती है। यहां कला की जटिलताओं के बारे में सीखने का समय निश्चित रूप से आपके रहने को सार्थक बना देगा। आपको पोचंपल्ली में स्थित श्री मार्कंदेश्वर मंदिर की सैर भी अवश्य करनी चाहिए। जो ऐतिहासिक 'भूषण आंदोलन' का घर होने के लिए प्रसिद्ध है, जिसे विनोभा भावे ने शुरू किया था। पोचमपैल्ली, सिर्फ साडि़यों के कारण विख्याात नहीं है बल्कि इस स्था न की संस्कृ ति, पंरपरा, विरासत, इतिहास और सुंदरता आदि भी यहां आने वाले पर्यटकों का मन मोह लेते है। यह सुंदर शहर, पहाडि़यों, खजूर के पेड़ों, झीलों, तालाबों और मंदिरों के बीच स्थित है। इस शहर में हमेशा हलचल रहती है, लोग अपने कामों में हमेशा व्य स्तह रहते है और मेहनती होते है।
गुजरात के कच्छ जिले में होडका
गुजरात के कच्छ जिले में होड़का को कच्छ की राजधानी के नाम से जाना जाता है, यह एक गांव है जो भुज से 63 किलोमीटर दूर स्थित है। यह गांव अपनी प्रसिद्ध कढ़ाई के काम के लिए जाना जाता है। क्योंकि इस स्थान पर आपकी यात्रा के पीछे मुख्य कारणों में से एक कारण यहां की कढ़ाई कला को देखना भी हो सकता है। इसके अतिरिक्त, आप मिट्टी दर्पण सजावट और चमड़े के शिल्प का भी आनंद ले सकते हैं। अकेले कला के काम को छोड़ दें, प्राकृतिक चमत्कारों का आकर्षण आपको इस जगह पर भी ले जाएगा जहां सर्दियों के मौसम में बनी घास के मैदानों में प्रवासी पक्षियों की 100 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। 'भंगा' में रहने का आनंददायक अनुभव या मिट्टी और छिद्रित छत के साथ स्थानीय डिजाइन किए गए झोपड़ियां आपको वापस रहने के लिए मजबूर कर सकती है। , स्थानीय शिल्प, वस्त्र और दर्पण के काम का आकर्षण आपको जगह छोड़ने नहीं देगा। इस गांव की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि पूरे गांव में एक भी घर सीमेंट का नहीं है। विदेशी पर्यटकों के लिए यहां विशेषतौर पर मिट्टी के मकान बनाए जाते हैं, जिसे प्राचीन तरीके से सजाया जाता है। रात में यहां पारम्परिक लोकनृत्य का अयोजन किया जाता है। इसके अलावा विभिन्न कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।
मक्खन और गुड़ के साथ युक्त रोटी, भव्य स्थानीय व्यंजनों के स्वाद से भरी होती है। आप शाम के दौरान यहां आराम कर सकते हैं और जैसे ही रात गहरी हो जाती है, बोनफायर की चमक और कच्छ के लोक संगीत की लय आपके अनुभव को और अधिक यादगार बना देते हे। यदि आप इस क्षेत्र के उत्सव का हिस्सा बनने के लिए उत्सुक हैं, तो आप शरद उत्सव, ध्रंग मेले और हाजीपीर मेले के अवसर पर यहां आ सकते हैं। यहां का रण महोत्सव पूरे देश में प्रसिद्ध है। यदि आप वायुमार्गों के माध्यम से यात्रा करना चाहते हैं, तो भुज इस गांव का नजदीकी हवाई अड्डा है।
पिपिली जिला पुरी, उड़ीसा
पुरी से 36 किलोमीटर दूर कोनार्क रोड भुवनेश्वर से पुरी रोड तक एक शाखा देखी जाती है, वहां दुनिया भर में प्रसिद्ध हस्तकरघा का मेला लगहा रहता है। इस गांव को पिपिली या पिप्ली कहा जाता है। पिप्ली का नाम पिप्ली सासन और दरजी साही गांवों के लिए किया जाता है। इस शहर के हस्तशिल्प इसकी आय के साधन के रूप में कार्य करते हैं। दुनिया भर में यात्रा करने वाली भव्य एप्लिक तकनीक इस जगह की आपकी यात्रा का एकमात्र कारण हो सकती है। फूलों, पक्षियों, सजावटी प्रकृति, देवताओं और देवियों के आकार में कपड़े कैसे काटे जाते हैं यह देखकर आपको यकीन नहीं होगा। विभिन्न आकृतियों में काटे गए कपड़ो को सील कर उन पर कढ़ाई-बुनाई द्वारा तरह तरह के डिजाइन बनाए जाते हैं जो देखने में बहुत ही सुंदर लगते हैं। यह देख कर आप खुश हों जाएगे। लैंपशैड्स, हैंडबैग, कुशन कवर, कैनोपी, गार्डन छाता इत्यादि कुछ ऐसे आइटम है जिन्हें आप आसानी से यहीं से खरीद सकते हैं। आप यहां स्वादिष्टि भोजन का आनंद भी उठा सकते हैं। जो स्थानिय होने के साथ-साथ काफी लज़ीज भी होता है। उड़ीसा राज्य अपनी पाक उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध है। यद्यपि उड़ीसा का संबध पुरी यानि धार्मिक शहर से है इसलिए यहां आपको शाकाहारी भोजन अधिक मात्रा में मिलेगा। लेकिन यहां कई ऐसी जगदह भी है जहां आप समुद्री मछलियों, केकड़े, झीगें इत्यादि जल-जीवों का आनंद उठा सकते हगैं। अन्य समुद्री भोजन यहां के राज्य के विशाल तट पर भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं।
बस्तर जिला, छत्तीसगढ़
छतीसगढ़ राज्य के बस्तर जिले में स्थित चित्रकूट झरना जिसे भारत के नियाग्रा के नाम से जाना जाता है, यह बस्तर जिले का मुख्य आकर्षण है। वाल्मीकि के महाकाव्य रामायण में उल्लेख के बाद से बस्तर जिले के एक नगर पालिका जगदलपुर का ऐतिहासिक महत्व है। जब आप छत्तीसगढ़ जाते हैं, तो आपको शानदार झरने के अलावा आनंद लेने के लिए कई स्थल मिलेगेंय़ पर्वत, घाटियां, जंगल हरियाली, गुफाएं और धाराएं इस जनजातीय क्षेत्र की खोज के हर कदम पर आपको लुभाने लगेगी। लोक कला और हस्तशिल्प का मुख्य स्थान, यह जगह आपको गोन्चा के त्यौहारों और राउत नाचा नामक पारंपरिक जनजातीय नृत्य के माध्यम से जनजातीय जीवन का स्वाद प्रदान करेगी। आप मिश्रित धातुओं, गोले, गाय, हड्डियों, तांबा और कांस्य से बने कुछ गहनों की खरीदारी कर सकते है। जो इस क्षेत्र की जनजातीय महिलाएं पहनती हैं। आप यहां स्वादिष्ट छत्तीसगढ़ी व्यंजन पखल भाट, अंगकर रोटी, कोसर और चावल का आटा चपाती के साथ अपनी जुबान और पेट को आनंद प्रदान कर सकते हैं। एक चीज जिसे आप यहां आकर कभी भुलाना नहीं चाहेगें वो यहां का शुद्ध देसी व्यंजन है जिसे महुवा कहा जाता है जो एक ही नाम से छोटे मलाईदार सफेद फल से बना होता है। इस जगह पर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर और मार्च के बीच का है। बस्तर के निकटतम हवाई अड्डा रायपुर है जो जगदलपुर से 300 किलोमीटर दूर स्थित है।
बल्लभपुर दंगा जिला बिरभूम, पश्चिम बंगाल
बंगाल में देहाती ग्रामीण सुंदरता के बीच रहने वाले संथाल आदिवासी जनजातीय समुदाय की भावना का अनुभव किया जा सकता है यदि आप शांतिनिकेतन से केवल 3 किलोमीटर दूर बीरभूम जिले में बल्लाभपुर दंगा जाते हैं। तो आपको एक सुंदर ग्रामीण जीवन जीने का अवसर प्राप्त होगा। आप यहां प्राकृतिक सौंदर्य और हरियाली को देख मंत्रमुग्ध हो जाएगें क्योंकि वन अभ्यारण क्षेत्र और पक्षी अभयारण्य बल्लभपुर दंगा के दक्षिण में स्थित है जो आपका भरपूर मनोरंजन करेगें। इसके पूर्व में सोनाजुरी जंगल है। जब आप स्थानीय जनजातियों के साथ मिलते हैं, तो आप उनकी कला और शिल्प और संस्कृति को गले लगाने के बारे में और जान सकते हैं। यहां शानदार टेराकोटा काम , चटाई बुनाई, बढ़ईगीरी, झाड़ू बाध्यकारी और सजावटी गहने विभिन्न प्रकार के बीज, तारीख हथेली, पत्तियों से आप आश्चर्यचकित हो जाएगें। आप जनजातीय लोगों द्वारा खेले जाने वाले उपकरण के ताल के खिलाफ आग के चारों ओर खुली हवा में जनजातीय नृत्य को देख कर अनदेखा नहीं कर पाएगें। जनजातीय समुदाय के गीत और पठन उनकी मिथकों और इतिहास के बारे में बताते हैं। यदि आप अक्टूबर और अप्रैल के बीच जाते हैं तो आप कई जगहों पर जा सकते हैं और अपनी यात्रा का आनंद ले सकते हैं। छाष प्रहार, बदना और चरक पूजा जैसे त्योहारों का हिस्सा होने के अलावा, आप सोनाजुरी में अपने स्थानीय बाजार या हाट से कुछ प्रामाणिक जनजातीय चीजें भी खरीद सकते हैं। आप अपने प्रवास के दौरान ताजा और कायाकल्प बने रहेंगे क्योंकि आप परंपरागत बीरभूम भोजन को पसंद करते हैं जिसमें चावल, पत्तेदार सब्जियां, मसूर और सभी प्रकार के ताजे तत्व होते हैं। बल्लावपुर दंगा हावड़ा रेलवे जंक्शन से 160 किलोमीटर दूर है। निकटतम हवाई अड्डा कोलकाता है।
अरमानुला, जिला पठानमथिट्टा, केरल
केरल में सबसे पुरानी नदी की नाव उत्सव ने अरमानुला बोट रेस को प्रचलित किया है जो कि सप्ताह के लंबे ओणम त्यौहार के प्रमुख आकर्षणों में से एक रहा है, इसका पंप नदी के किनारे स्थित अरमानुला के अद्वितीय विरासत गांव में इसका घर बताता है। प्रसिद्ध सांप नाव दौड़ हर साल हजारों दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। आप जिसे देखे बिना रह नहीं पाएगें। यहां के ग्रामीण जीवन का पूरी तरह से आनंद लेने के लिए आप यहां के घरों में जा सकते हैं।
आप केरल के सुन्दर प्रधान भोजन का आनंद ले सकते हैं जिसमें चावल, सब्जियों और विभिन्न प्रकार के दालों के साथ शामिल 'सांबर' और 'अवयाल' सबसे मशहूर व्यंजन बनाया जाता हैं। मलयालम व्यंजन में मछली सामान्य रुप से शामिल की जाती है। आप अर्नमुला धातु दर्पण, भित्ति चित्रों या नौकाओं को वार्षिक नाव दौड़ के लिए उपयोग करने में लगे कारीगरों को देखकर घंटों खर्च कर सकते हैं। यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन चेंगन्नूर है जो अरमानुला से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित है। तिरुवनंतपुरम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है जो 117 किलोमीटर दूर है।
लाचेन उत्तर जिला, सिक्किम
लचेन उत्तर सिक्किम में गंगाटोक से 129 किलोमीटर दूर एक जनजातीय गांव है। यह चट्टानों के साथ यह 8500 फीट ऊंचा गांव, बर्फ से ढंके चोटियों और कनिष्ठ और रोडोडेंड्रॉन अपनी पृष्ठभूमि में ताजगी और शुद्धता का सही सार देता है। जिसके कारण यह कई लोगों का पसंदीदा ग्रामीण पर्यटन गंतव्य बन गया है। 200 घरों की तुलना में, यह गांव अद्भुद होमस्टे सुविधाएं प्रदान करता है। आप प्रकृति की गोद में बैठकर अपनी आत्मा की सब अशुद्धियों को दूर कर उन्हें शुद्ध कर सकते हैं। यहां का प्रसिद्ध लचेन मठ के पवित्र मंत्र आपको और ज्यादा आकर्षित करेगें। लचेनपास के बीच रहना जो खुशहाल भाग्यशाली लोगों को प्राप्त होता है। यहां के लोग उपवास रख साल भर के अवसरों, सामाजिकरण और त्योहारों में जश्न मनाते हैं। यहां के रीति-रिवाज आपको ताज़ा कर देंगे । कुछ त्यौहार जिन्हें आप लेचेनपास के साथ आनंद ले सकते हैं, वे ड्रुकपा टीएस-शि, लोसॉन्ग, फांग लब्सोल, ल्हाबाब ढुचेन, चाम, ड्रुक और सागा दावा हैं। आप लाचेन के ग्रामीणों में शामिल हो सकते हैं और अपने मुख्य भोजन को पसंद करते हैं जिसमें चावल, आलू और सूअर का मांस शामिल है। चावल अक्सर स्थानीय रोटी, नूडल्स और मकई और सिक्किमीज मामो जैसे अन्य स्थानीय व्यंजनों द्वारा पूरक हो जाता है। यदि आप मार्च से जुलाई या अक्टूबर से मध्य दिसंबर तक जाते हैं तो यह आपकी सबसे मजेदार यात्रा हो सकती है।
कराईकुडी जिला शिवगंगा, तमिलनाडु
यदि आप केले के पत्ते पर गर्म और मसालेदार व्यंजनों के प्रामाणिक स्वाद का अनुभव करना चाहते हैं, तथा पाठ्यक्रमों की एक बड़ी संख्या के साथ और साधारण लोगों की आतिथ्य का आनंद लेंना चाहते हैं, तो आपको तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में कराईकुडी या चेतेनाद गांव जाना चाहिए। यहां का ग्रामीण जीवन आपको बहुत प्रभावित करेगा। आप भव्य भोजन के अलावा, प्रसिद्ध पुराने चेतेयार मकानों का दौरा कर सकते हैं और कला और वास्तुकला, समृद्ध विरासत और चेतेईर समुदाय के समृद्धि को देख सकते हैं। यह कला अभी भी नक्काशीदार सागौन, ग्रेनाइट स्तंभों से बने दरवाजे और फ्रेम में दिखाई देती है। संगमरमर के फर्श, इतालवी टाइल्स, बेल्जियम दर्पण और वास्तुकला की भव्यता आपको मंत्रमुग्ध कर देगी। यदि आप नवंबर और फरवरी के महीनों के बीच इस जगह पर जाते हैं तो आप अपनी यात्रा का आनंद और लाख गुना बढ़ जाएगा। तिरुकोषतियूरट्रैक्ट्स में कार्पाका विनायक मंदिर और श्री सोमानियानारायण पेरुमल कोविल का दौरा भी आप कर सकते हैं। इस जगह का निकटतम हवाई अड्डा मदुरई हवाई अड्डा है जो 80 किलोमीटर दूर स्थित है।
बनवसी, उत्तरा कन्नड़ जिला, कर्नाटक
पश्चिमी घाटों के वर्षा वनों ने बनवसी या कोकणपुरा को आश्रय दिया है जो वारादा नदी द्वारा तीनों तरफ से घिरा हुआ है। 9वीं शताब्दी में निर्मित मधुकेश्वर मंदिर के आसपास विकसित, यह भारतीय राज्य के सबसे पुराने स्थानों में से एक है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह गांव गन्ना, चावल, मसाले, अरेका पागल और अनानस बढ़ने के लिए प्रसिद्ध है। यह सांस्कृतिक रूप से समृद्ध स्थान आपको प्रसिद्ध सांस्कृतिक त्यौहार में भाग लेने देगा जो कि कदंबोथसव के नाम से जाना जाता है जिसे हर साल दिसम्बर में आयोजित किया जाता है। जिसमें शास्त्रीय संगीत, लोक नृत्य, नाटक, कला प्रदर्शनियों और साहित्यिक कार्यों को दक्षिण भारत के कई प्रतिभाशाली कलाकारों द्वारा योगदान दिया जाता है। प्रसिद्ध यक्षगाना मास्क जो उत्तरका कर्नाटक के साथ मनाया गया यक्षगाना नृत्य में उपयोग किए जाते हैं, इस जगह पर बने होते हैं। बनवसी का निकटतम हवाई अड्डा बैंगलोर है जो 326 किलोमीटर दूर है।
नेपुरा, नालंदा जिला, बिहार
भारत का पूर्वी राज्य बिहार में स्थित राजगीर से 10 किलोमीटर दूर और नालंदा से 4 किलोमीटर दूर, नेपुरा ने अपने ऐतिहासिक महत्व को अर्जित किया है क्योंकि व्यापक विश्वास के कारण भगवान गौतम बुद्ध ने इस स्थान पर अपना पहला प्रचार दिया था। नालंदा विश्वविद्यालय के तीन प्रसिद्ध आम ग्रोवों में से एक यहां स्थित था जहां गौतम बुद्ध और महावीर दोनों रहे। राजगीर और नालंदा के कस्बों के बीच यह छोटा गांव प्रसिद्ध तुसर रेशम के बुनाई के लिए प्रसिद्ध है। 250 गांवों में से लगभग 50 गांव रेशम बुनाई में हैं। यदि आप गांव रिसॉर्ट्स में रहने का अनुभव करने के लिए उत्सुक हैं, तो आप सर्दियों के महीनों के दौरान इस जगह पर जाने पर सबसे ज्यादा आनंद ले सकते हैं। आपके प्रवास के दौरान, आप उन स्थानीय लोगों से मिलेंगे जो मेहमानों को खाना बनाना, खाना और खिलाना पसंद करते हैं। इस क्षेत्र के मुख्य भोजन में चावल, दालें और विभिन्न प्रकार की सब्जियां होती हैं। बिहार के प्रमुख आकर्षणों में से एक छठ पूजा है, जिसे वर्ष में दो बार मनाया जाता है। नालंदा नेपुरा और पटना के निकटतम रेलवे स्टेशन है जो कि 72 किमी दूर है। इसका निकटतम हवाई अड्डा पटना है।
मंडु, मध्य प्रदेश
अपने ग्रामीण आकर्षण, संस्कृति और विरासत से समृद्ध, मंडु मध्य प्रदेश के इंदौर से करीब 100 किलोमीटर दूर स्थित है। यह महलों, किलों, मस्जिदों, जैन मंदिरों और कब्रों का केंद्र है। एक अद्भुद पर्यटन गंतव्य होने के अलावा मंडु अपने जजाज़ी महल, हिंदुला महल, तवेली हवेली, अशरफली महल, बाज बहादुर का महल और रानी रूपमती के मंडप के लिए प्रसिद्ध है। रानी रूपमती और बाज बहादुर की रोमांटिक कहानियों की सुगंध इस जगह की हवा में घुली हुई है। मॉनसून इस मनोरम गंतव्य की भावना का आनंद लेने का सबसे अच्छा मौसम है। जब आप शाही कहानियों और ऐतिहासिक आकर्षण के बीच खो जाते हैं, जब आपकी कल्पना भूख की पीड़ा से टूट जाती है, तो आप यहां पर बने आकर्षक व्यंजनों को भस्म कर सकते हैं। यहां आप विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का आनंद लेंगे, कुछ व्यंजन कुस्ली, जलेबी, बाफला, मटर के साथ पायलफ, लवांग लता, इंडोरी पुरी पालकी की, बिरयानी और कबाब हैं। आप गेहूं से बने चक्की की शाक के साथ अपने मुंह को मीठा करने के लिए दूध और मकई, मवा-बाटी और मालपुआ से बने ब्यूट की कीज़ का आंनद भी ले सकते हैं। यदि आप रानी रूपमती के मंडप से सूर्यास्त देखने में उत्सुक है तो आपको इस जगह पर अवश्य जाना चाहिए। इसका निकटतम हवाई अड्डा इंदौर (100 किलोमीटर) है और सबसे सुविधाजनक रेलवें स्टेशन मुंबई-दिल्ली राजमार्ग पर रतलाम (105 किलोमीटर) है।
शेखावटी, राजस्थान
शेखावती, जिसका नाम शासक राव शेख के नाम पर रखा गया है, जिसका मतलब शेख का बाग है,। यह उत्तरी राजस्थान में एक अर्ध रेगिस्तान क्षेत्र है। असंख्य महल या हवेली के साथ बिंदीदार, इस जगह को "राजस्थान की खुली कला गैलरी" माना जाता है। पेंट किए गए हवेली की खूबसूरत पौराणिक कथाओं, किलों, मस्जिदों, महलों और महारानी चित्रों का प्रदर्शन करने वाले फ्रेशको चित्रों के लिए उल्लेखनीय रूप से इस जगह की समृद्धि में योगदान देती है। शेखावती के रूप में समृद्ध एक पर्यटक के रूप में आप न केवल इस तरह की समृद्ध विरासत का आनंद लेंगे, बल्कि आप सजाए गए चेस्ट, टाई डाई कपड़े, धातु के बर्तन, चूड़ियों और पीतल और लौह कैंची जैसे कई हस्तशिल्पों के लिए खरीदारी का भी आनंद लें सकते हैं। राजस्थानी प्रसन्नता की भावना आपको आकर्षित करेगी और आपको कुछ और दिनों तक वापस रहने के लिए मजबूर करेगी। सड़क से शेखावाटी तक पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका जयपुर या बीकानेर से है। जयपुर में निकटतम हवाई अड्डा संगानेर हवाई अड्डा है।
नग्गर, हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश में मनाली से 22 किलोमीटर दूर, एक छोटा सा गांव है जो अपने मूल्यवान विरासत के लिए प्रसिद्ध है, नग्गर नाम से 5750 फीट समुद्र तल से, नलगीरी पहाड़ी पर यह गांव बीस नदी के बाएं किनारे के पास स्थित है। यदि आप कुछ पल शांति और सुकुन में बिताना चाहते हैं तो आपको यहां अवश्य आना चाहिए। हिमालयी गांव में कुछ गुणवत्ता टाई खर्च करना चाहते हैं, तो नागगर आपका आदर्श गंतव्य होगा। 16 वीं शताब्दी में राजा सिध सिंह द्वारा निर्मित नगर महल के रूप में किसान मौसम, शानदार सुंदरता, प्राचीन शुद्धता और अतीत के ऐतिहासिक अवशेष इसे आदर्श ग्रामीण पर्यटन हॉटस्पॉट बना सकते हैं। प्रसिद्ध नागगर महल के अलावा, आप गौरी शंकर मंदिर, दगपो शेड्रपलिंग मठ, चामुंडा भगवती मंदिर और मुरलीधर मंदिर भी जा सकते हैं। यदि आप नागगर लोगों का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो आप प्रामाणिक व्यंजनों का स्वाद ले सकते हैं जिनमें लाल चावल, राजमा, करही, दालें और सिद्दू शामिल हैं। इस हिमालयी गांव में सबसे अच्छे प्रकार के होमस्टे अनुभव के लिए, आपको मार्च और जून या अगस्त और अक्टूबर के बीच में यात्रा करनी चाहिए।
पुष्कर, राजस्थान
तीर्थयात्रा और आश्रम का एक छोटा सा पवित्र गांव पुष्कर राजस्थान जयपुर के दक्षिण में 135 किलोमीटर दूर है। यहां के स्थानीय गाइड इस जगह की एक कहानी बताते हैं जहां कहा जाता है कि उस समय के दौरान जब देवताओं और देवियों ने पृथ्वी के ग्रह पर घूमते थे, भगवान ब्रह्मा महायागण करने के लिए एक जगह की तलाश में थे। जिसके लिए उन्होंने एक हंस को ले जाने के लिए कमल दिया गया यह स्थान जहां कमल गिर गया और यह महायागना स्थल बन गया। ऐसा माना जाता है कि पुष्कर में कमल गिर गया था और पुष्कर झील का गठन हुआ था। आप पुष्कर के राजसी मंदिरों से अचंभीत होने और यहां लोगों की धार्मिक जीवनशैली से प्रभावित होने के लिए निश्चित रुप से यहां आ सकते हैं। यहां का भोजन बहुत बुनियादी और स्वादिष्ट है। पुष्कर जाने का सबसे अच्छा समय सर्दियों के दौरान है। यदि आप एक नई शुरुआत की तलाश में हैं, तो आपको इस जगह पर जाना चाहिए जहां आपको शांति और सुकुन का अनुभव प्राप्त होगा।
ओरछा, मध्य प्रदेश
यदि आप अपने दैनिक जीवन से थक गए हैं। शोर-शराबों से विचिलत है तो आपको तो आपको ओरछा जाना चाहिए, जो स्वप्नभूमि से कम नहीं है। स्थानीय बुंदेलखंडी भाषा में मध्य प्रदेश राज्य, ओरछा के टिकमगढ़ जिले के एक छोटे से शहर का अर्थ है 'छुपा' है। बुंदेला राजपूत राजाओं की गौरवशाली राजधानी के अवशेष इस जगह को और अधिक रोमांचक और लोकप्रिय बनाते हैं। अर्चहा गले लगाने वाली समृद्ध और मनोरम संस्कृति बुंदेलखंड सम्राटों के युग को दर्शाती है। आप यहां स्थानीय त्यौहारों का आनंद ले सकते हैं जिनमें दशहरा, राम नवमी और दीवाली शामिल हैं। यदि आप एक खाने के शौकिन है हैं, तो ओरखा आपके लिए फिर से एक आदर्श ग्रामीण पर्यटन गंतव्य है जो आपको शाकाहारी, मांसाहारी और मिठाई की विस्तृत श्रृंखला प्रदान करता है। चूंकि ओरछा के पास हवाई अड्डा नहीं है, इसलिए आपको ग्वालियर हवाई अड्डे पर उड़ान भरना होगा और फिर 120 किलोमीटर दूर ओरछा यात्रा करनी होगी।
थवनम्पाले पुट्टूर, आंध्र प्रदेश
हैदराबाद से 539 किलोमीटर दूर, थवनम्पाले पुट्टुर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में थवनम्पाले मंडल में अपनी कृषि, रेशम और मैंग्रोव के लिए लोकप्रिय छोटा सा गांव है। यहां आयोजित प्रमुख रेशम व्यवसाय ने इस छोटे से गांव को और भी प्रमुख बना दिया है। आप यदि पारंपरिक घरों में सुखद रहने का अनुभव करना चाहते हैं तो आपको यहां आना होगा । ग्रामीणों की स्वस्थ और सरल जीवनशैली आपके सामने एक नया क्षितिज खोलती है जिससे आप जीवन के नए आयाम को कल्पना कर सकें। रेशम साड़ी बुनाई में लगे ग्रामीण आपको रेशम साड़ी बनाने की प्रक्रिया का एक बड़ा दौरा करने का यादगार अनुभव दे सकते हैं। आप स्थानीय लोगों की गर्म आतिथ्य और जीवन की सादगी को देखकर प्रसन्न होंगे। चित्तूर थवनम्पाले पुट्टूर का सबसे नजदीक शहर है जिसमें पास के पास कोई रेलवे स्टेशन नहीं है।
आपके उबाऊ दैनिक जीवन और शहरी शोर-शराबों से दूर भारत के यह गावं ग्रामीण पर्यटन के साथ-साथ आपके अंदर नई ऊर्जा और सकरात्मकता का प्रचार-प्रसार कर देगें। जहां आपको शांति और सुकुन तो मिलगा ही साथ ही आप प्रकृति के करीब स्वंय को महसूस कर पाएगें।