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भारतीय इतिहास में कई ऐसे महान योद्धा हुए हैं जिन्होंने भारत को एक समृद्ध इतिहास प्रदान किया है। इन योद्धाओं और शासकों की बदौलत भारतीय इतिहास जीवंत है। भारत के महानतम सम्राटों में से एक, चंद्रगुप्त मौर्य मौर्य साम्राज्य के संस्थापक थे। चन्द्रगुप्त मौर्य, अखंड भारत निर्माण करने वाले प्रथम सम्राट थे| उन्होंने 324 ई। पूर्व तक राज किया और बाद में बिन्दुसार ने मौर्य साम्राज्य की कमान संभाली थी| चन्द्रगुप्त मौर्य भारत के इतिहास में एक निर्णायक सम्राट था| उसने नन्द वंश के बढ़ते अत्याचारों को देखते हुए चाणक्य के साथ मिलकर नन्द वंश का नाश किया| उसने यूनानी साम्राज्य के सिकन्दर महान के पूर्वी क्षत्रपों को हराया और बाद में सिकन्दर के उत्तराधिकारी सेल्यूकस को हराया| यूनानी राजनयिक मेगास्थिनिज ने मौर्य इतिहास की काफी जानकारी दी| उसने अधिकांश भारतीय उपमहाद्वीप और उसके साम्राज्य को बंगाल और असम से लेकर अफगानिस्तान और बलूचिस्तान, ईरान के कुछ हिस्सों, कश्मीर और नेपाल तक और दक्कन के पठार तक को जीत कर लगभग समस्त भारत में अपनी आधिपत्य स्थापित किया था। उनके पोते अशोक को भला आज कौन नहीं जानता होगा जिसने मौर्य सम्राज्य और भारतीय इतिहास को खास पहचान दी। जो बाद में भारत के महानतम सम्राटों में से एक बने।
चंद्रगुप्त मौर्य का जीवनकाल
चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म लगभग 340 ईसा पूर्व में हुआ था। चंद्रगुप्त की उत्पत्ति को विभिन्न तरीकों से संदर्भित किया गया है। कुछ लोगों के अनुसार उनका जीवन बिहार के मगध के नंद राजवंश से जुड़ा हुआ है। जबकि बौद्ध ग्रंथों में उनका वर्णन "मोरिया" नामक खट्टी वंश के एक खंड के रूप में वर्णित किया गया है। इनकी माता का नाम मुरा था। यह भी माना जाता है कि मौर्य शब्द उनकी माँ मुरा के नाम से लिया गया। पुराणों में वर्णित के अनुसार, चंद्रगुप्त मौर्य ने 24 वर्षों तक शासन किया। इसके बाद उनके बेटे बिंदुसार ने 25 साल तक शासन किया। 274 ईसा पूर्व में बिन्दुसार की गद्दी अशोक ने संभाली, जो एक सफल शासक हुआ। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को राजनीति और युद्ध कौशल के विभिन्न पाठ सिखाए थे। चाणक्य या कौटिल्य एक महान विद्वान थे, जो प्राचीन तक्षशिला विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान के शिक्षक थे। उसके बाद चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु बने। चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद वंश के शासक धनानंद को हराकर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। मौर्य साम्राज्य पूर्व में बंगाल और असम से लेकर अफगानिस्तान और बलूचिस्तान तक, पश्चिम में पूर्वी और दक्षिण-पूर्व ईरान तक, उत्तर में कश्मीर और दक्षिण में दक्कन के पठार तक फैला हुआ था। ग्रीक और लैटिन स्रोतों ने उसे "सैंड्राकोट्टोस" या "एंड्राकोटस" के रूप में संदर्भित किया। अपने जीवन के बाद के भाग के दौरान उन्होंने अपने सिंहासन को त्याग दिया और एक भिक्षु बन गए। उन्होंने एक मितव्ययी जीवन का नेतृत्व किया और जैन धर्म की पंरपरा के अनुसार उन्होने संथाला किया जिसमें बिना कुछ खाए पिए मृत्यु की प्राप्ति तक रहना पड़ता है। 298 ईसा पूर्व में वह मृत्यु को पाने में सफल हुए और भारतीय इतिहास पर अपनी गहरी छाप छोड़ गए।
मौर्य सम्राट के रूप में चंद्रगुप्त
चंद्रगुप्त मौर्य भारत के महानतम सम्राटों में से एक थे। उसने अधिकांश भारतीय उपमहाद्वीप को जीत लिया। उसका साम्राज्य बंगाल और असम से लेकर अफगानिस्तान और बलूचिस्तान, ईरान के कुछ हिस्सों, कश्मीर और नेपाल तक और दक्कन के पठार तक फैला हुआ था। चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य के शिक्षक थे। वह मौर्य साम्राज्य की स्थापना और चंद्रगुप्त के सत्ता में उदय का मुख्य वास्तुकार थे। वे चंद्रगुप्त और उनके पुत्र बिन्दुसार के मुख्य सलाहकार थे। चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य को नंद साम्राज्य को पराजित करने और उत्तरी भारत में मौर्य साम्राज्य की स्थापना करने का श्रेय दिया गया है। चाणक्य के मार्गदर्शन में मौर्य द्वारा धन नंद साम्राज्य के विनाश की योजना बनाई गई थी।
उन्होंने और चंद्रगुप्त ने उत्तरपश्चिम भारत के परवक्ता के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसने नंद साम्राज्य पर उनकी जीत सुनिश्चित की। बाद में साम्राज्य को परवक्ता और चंद्रगुप्त के बीच विभाजित किया गया था। चाणक्य ने अपने दुश्मनों के कई हमलों से चंद्रगुप्त को बचाया। उन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना के बाद चंद्रगुप्त के सलाहकार के रूप में काम करना जारी रखा। लोकप्रिय किंवदंतियों के अनुसार, उन्होंने दुश्मनों की विषाक्तता के लिए प्रतिरक्षा बनाने के लिए चंद्रगुप्त के भोजन में जहर की छोटी खुराक को जोड़ा। ताकि वह आगे के समय में जहर के प्रभाव में ना आए और उन पर इसका असर ना हो। किन्तु एख बार चंद्रगुप्त का जहर वाला खाना उनकी पत्नी ने खा लिया था जिससे उनकी मृत्यु हो गई। इस बात का पचा चलते ही चाणक्य ने रानी का पेट काट कर बच्चे को बाहर निकाला जिसका नाम बिन्दुसार रखा गया। चंद्रगुप्त ने उत्तर पश्चिन में मैसेडोनियन क्षत्रपों को हराया। बाद में उन्होंने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की, जिसने बंगाल की खाड़ी को सिंधु नदी तक फैला दिया। उन्होंने बाद के वर्षों में अपने साम्राज्य का और विस्तार किया। बाद में उन्होंने सेल्यूकस के पूर्वी फ़ारसी प्रांत को रद्द कर दिया। उसने अफगानिस्तान में सिकंदर के सेनापतियों को हराया। उस समय भारत सिकंदर के हमलों से जूझ रहा था। उसका भारत के कई हिस्सों पर कब्जा था। इसी बीच 323 बीस आते-आते सिकंदर की मौत हो गई। उसका सारा साम्राज्य उसके जनरलों ने तीन भागों में बांट लिया। चंद्रगुप्त ने मौके की नजाकत को समझा और सिकंदर के कब्जे वाले क्षेत्रों पर एक-एक करके कब्जा करना शुरु कर दिया। इस कोशिश में उसको सेलुकस का सामना भी करना पड़ा, किन्तु अब तक चंद्रगुप्त एक महान योद्धा बन चुके थे। उन्हें सेलुकस को हराने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी।
297 में उनके पुत्र बिन्दुसार ने उनके साम्राज्य को संभाला। मौर्य साम्राज्य को इतिहास के सबसे सशक्त सम्राज्यो में से एक माना जाता है। अपने साम्राज्य के अंत में चन्द्रगुप्त को चेरा, प्रारंभिक चोला और पंड्यां साम्राज्य और कलिंग को छोड़कर सभी भारतीय उपमहाद्वीपो पर शासन करने में सफलता भी मिली। उनका साम्राज्य पूर्व में बंगाल से अफगानिस्तान और बलोचिस्तान तक और पश्चिम के पकिस्तान से हिमालय और कश्मीर के उत्तरी भाग में फैला हुआ था। साथ ही दक्षिण में प्लैटॉ तक विस्तृत था। भारतीय इतिहास में चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल को सबसे विशाल शासन माना जाता है।
चंद्रगुप्त मौर्य पर किए गए कार्य
चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन को टेलीविजन श्रृंखला "चंद्रगुप्त मौर्य" में चित्रित किया गया है। चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन पर 1977 में तेलुगु भाषा में “चाणक्य चन्द्रगुप्त ” नाम से फिल्म बनी| इसके बाद रूद्र राक्षश नाटक से प्रेरित चाणक्य के सम्पूर्ण जीवन पर दूरदर्शन पर टीवी सीरियल प्रसारित किया गया| टेलीविजन श्रृंखला "चाणक्य" और फिल्म "अशोका" के संदर्भ में चंद्रगुप्त मौर्य को दर्शाया गया है। 2001 में चंद्रगुप्त मौर्य पर भारतीय डाक सेवा द्वारा एक स्मारक डाक टिकट जारी किया गया था।