भारत का हर त्यौहार खुशी और एकता का प्रतिक है। जो विभिन्न जाति-धर्मो और संस्कृतियों के मनुष्यों को एक कर भारतिय होने का गर्व महसूस कराता है। प्रत्येक त्यौहार का अपना ही महत्व होता है हर त्यौहर एक महत्वपूर्ण संदेश देता है। जिसका अर्थ मन, शरीर और आत्मा को उजागर करना होता है। प्रत्येक वर्ष भारत में कई रंगीन त्योहारों एवं उत्सवों का जश्न मनाया जाता है। यहां के प्रत्येक त्यौहार के पीछे एक विशेष कहानी एक विशेष उद्देश्य छिपा होता है। जो जीवन का संदेश देता है। कुछ त्यौहार जैसे क्रिसमस, ईद और दिवाली पूरे भारत में मनाए जाते हैं जबकि कुछ क्षेत्रीय बिहू, ओणम और पोंगल जैसे त्यौहार क्षेत्रीय एवं राज्यस्तरीय मनाए जाते हैं।
भारत में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई एवं सिधीं, पारसी धर्मों के कई महत्वपूर्ण त्यौहार मनाए जाते हैं जो भारत के धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने का एहसास दिलाते हैं। भारत में कई महत्वपूर्ण दिन भी त्यौहारों के रुप में मनाए जाते हैं जिनमें भारत को स्वतंत्रता मिलने का दिन 15 अगस्त जिसे स्वतंत्रता दिवस के रुप में प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। वहीं संविधान लागू करने का दिन 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के रुप में मनाया जाता है तथा राष्ट्र पिता गांधी जी का जन्मदिवस गांधी जयंती के रुप में अक्टूबर के दिन पूरे भारत में मनाई जाती है। यह दिन किसी त्यौहार से कम नहीं है।
दिवाली या दीपावली
दिवाली या दीपावली हिन्दूओं का सबसे बड़ा त्यौहार है जो हर साल अक्टूबर-नवंबर में मनाया जाता है दिवाली का त्यौहार लगभग पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है। यह एक पवित्र अवसर है जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतिक है। दीवाली एक रौशनी का त्यौहार है इसे लक्ष्मी पूजा भी कहा जाता है। इस दिन भगवान राम 14 वर्षों का वनवास काटकर अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस आए थे। उनके आने की खुशी में त्यौहार दिए जलाकर एवं आतिशबाजी करके मनाया जाता है। इस दिन विशेषरुप से माता लक्ष्मी की पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने से उनकी असीम कृपा प्राप्त होती है। यह दिन रौशनी और खुशियों के दिन का प्रतिक होता है। हिन्दू मान्यता में इसे सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। दक्षिण-भारत में दीवाली को राक्षसों के नरकसुर पर भगवान कृष्ण की जीत का प्रतिक माना जाता है। दिवाली के आतिशबाजी के साथ माता लक्ष्मी, श्री गणेश एवं कुबेर की पूजा की जाती है।
होली
होली भारतीय सभ्यता ओर हिन्दू मान्यता का सबसे प्राचीन और प्रमुख त्यौहार है। यह वसंत महोत्सव के दौरान फाल्गुन माह में यानि मार्च के महीने में हर साल मनाया जाने वाला एक रंगीन त्यौहार है। होली को रंगो का त्यौहार भी कहा जाता है क्योंकि इस त्यौहार के दौरान रंग-बिरगे रंगो से एक दूसरे को गले मिलकर बधाई दी जाती है। लोग एक दूसरे के गाल पर रंग लगाते हैं। होली के उत्सव से जुड़े कई किंवदंतियों हैं। सभी किंवदंतियों में से सबसे महत्वपूर्ण होलिका दहन है। 'होली' शब्द राक्षसी होलिका के नाम से लिया गया है जो राक्षस राजा हिरण्यकश्यप की बहन थी। होलिका के पास वरदान था कि कोई आग उसे भस्म नहीं कर सकती थी। राजा हिरण्यकश्चप भगवान विष्णु का दुशमन था वह स्वंय को भगवान मानता थ। और हर किसी को खुद पूजा करने के लिए मजबूर करता था। इसके विपरित उसके अपने बेटे प्रहलाद ने कभी इस बात को स्वीकार नहीं किया क्योंकि वह एक और एकमात्र सर्वोच्च शक्ति में विश्वास करते थे। प्रहलाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे। जब राजा हर तरह से अपने बेटे को अपने पक्ष में करने से हार गया तब राजा ने अपनी बहन को कहा कि वह प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए ताकि प्रहलाद जल जाए। होलिका ने ऐसा ही किया लेकिन भगवान नारायण की कृपा से प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ उल्टा वरदान प्राप्ति के बाद भी होलिका जल के भस्म हो गई। तभी से इस दिन को होलिका दहन किया जाता है और उसके अगले दिन होली का त्यौहार मनाया जाता है। होली के दिन लोग गाते हैं, नृत्य करते हैं और विशेष व्यंजन बनाते है। दोस्तों रिश्तेदारों पर रंग डालकर इस दिन का जश्न मनाते हैं।
जन्माष्टमी
भगवान कृष्ण के जन्म लेने के दिन को जन्माष्टमी के रुप में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भगवान कृष्ण को भगवान विष्णु का 8 वां अवतार माना जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण के जन्म के स्वरुप उपवास किया जाता है। मंदिरों में विशेषकर मथुरा और वृंदावन के कृष्ण मंदिरों में भक्तों की लंबी कतारें लगती है। इस दिन भगवान कृष्ण के भजन गाकर उनसे अच्छे जीवन की प्रार्थना की जाती है। कृष्ण जन्माष्टमी पूरे भारत में मनाई जाती है। इस दिन मंदिरों को फूलों से सजाया जाता है। भगवान कृष्ण की लीलाओं की झांकियां निकाली जाती हैं। लोग बाल कृष्ण को झूला-झुलाते हैं, नृत्य करते हैं तथा "हरे कृष्ण" का जाप करते हैं। भगवान कृष्ण वासुदेव और देवकी के पुत्र थे जिनका पालन पोषण यशोदा एवं नंद बाबा ने किया था। कृष्ण अपनी बाल लीला के साथ-साथ अपनी रास लीला के लिए भी बहुत प्रसिद्ध थे। जन्माष्टमी का त्यौहार विभिन्न रुपों में भारत के विभिन्न राज्यों में मनाया जाता है। मुंबई तथा पूरे महाराष्ट्र में, जन्माष्टमी को एक लोकप्रिय अनुष्ठान दही-हांडी द्वारा चिह्नित किया जाता है, जिसे विभिन्न संगठनों, समूहों और समाजों द्वारा व्यवस्थित किया जाता है। प्रतिभागियों का एक बड़ा समूह शीर्ष पर लटकते हांडी (मटके) तक पहुंचने के लिए एक पिरामिड बनाता है। एक व्यक्ति इसे तोड़ने और मक्खन पाने के लिए गोविंदाओं के कंधे पर पर चढ़ता है, दही हांडी फोड़ता है। वृंदावन यानि 'कृष्ण की भूमि' पर इस दिन हजारों भक्त मंदिर मे जाते हैं। ताकि उन्हें भगवान की झलक देखने को मिल जाए इस दिन हर जगह रौनक रहती है।
मीठी ईद
ईद उल फितर जिसे मीठी ईद भी कहा जाता है मुस्लिम समुदायों का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस दिन मुसलमान लोग एक महीने तक चल आ रहे रमजान के पवित्र महीने का उपवास तोड़ते हैं। उपवास तोड़ने के लिए चांद का दिखना बहुत जरुरी होता है अन्यथा ईद की तरीख आगे बढ़ जाती है। यह त्यौहार मुस्लिम समुदाय के पाक महीना रमजान की समाप्ति को इंगित करता है। यह त्यौहार आपसी मेल-मिलाप, प्यार एवं भाईचारे का प्रति है इस दिन मुस्लिम घरो में विशेष रुप से मीठी सेवइंया बनती है नमाजी मस्जिद में नमाज अदा कर गले मिलकर ईद की बधाई एक दूसरे को देते हैं। भक्त सुबह-सुबह मस्जिद में जाकर प्रार्थना करते हैं और एक-दूसरे से मिलते हैं।
गुरु नानक जयंती
गुरु नानक जयंती या गुरु पुरब, सिख समुदाय का प्रमुख त्यौहार है। सिख समुदाय अपने गुरुओं की शिक्षा पर अधारित है। गुरु नानक देव सिख समुदाय के प्रथम गुरु हैं। उनके जन्मदिवस को ही गुरु नानक जयंती के रुप में मनाया जाता है। इस दिन, सिख समुदाय के सभी लोग गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थना करने जाते हैं। वह गुरुद्वारे के पवित्र सरोवर मे स्नान करते हैं। जिसके बाद अपने सम्मानित गुरु की सभी शिक्षाओं को याद करते हैं और महान आत्मा की प्रशंसा करते हैं। इस दिन सिख समुदाय के लोग सड़को पर भजन और गुरुवाणी गाते हुए जुलुस निकालते हैं। साथ ही गुरुद्वारों, सड़कों पर लंगर का आय़ोजन किया जाता है जिसमें कोई भी व्यक्ति आकर भोजन ग्रहण कर सकता है। लंगर का आयोजन विशेष रुप से गरीबों एवं जरुरतमंदो के लिए किया जाता है। अधिकतर सिख समुदाय लंगर व्यवस्था का आयोजन करते हैं।
दुर्गा पूजा
दुर्गा पूजा या दुर्गोत्सव एवं शरदोत्सव हिन्दुओं तथा विशेष रुप से बंगाली समुदायों का विशेष त्यौहार है जिसमें मां दुर्गा की विशेष रुप से पूजा की जाती है। मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का अंत किया था यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतिक है। इस दिन की शुरुआत दशहरे से 10 दिन पहले ही शुरु हो जाती है। हर तरफ दुर्गा पूजा की धूम होती है। पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित होती हैं। दिन भर उनकी पूजा होती है। हर तरफ माहौल एक दम भक्तिमय हो जाता है। पश्चिम बंगाल और असम में दुर्गा पूजा के वक्त सार्वजनिक अवकाश की घोषणा हो जाती है। दुर्गा मां, जिन्हें आदिशक्ति के नाम से भी जाना जाता है। इनके 9 रूप हैं। नवरात्रि के नौ दिन सब रूपों की पूजा की जाती है। दुर्गा पूजा में पंडालों के बाद जो सबसे ज्यादा भव्य चीज होती है वो होती है धुनूची नाच, इस नाच में महिलाएं लाल बॉर्डर वाली सफेद साड़ी पहन कर, धूने के साथ नृत्य करती हैं। ये नृत्य कई अलग अलग प्रकार में किया जाता है। पूजा के अंत में मां दुर्गा की स्थापित मूर्ति का विसर्जन होता है। बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, मणिपुर और त्रिपुरा में हिंदू कैलेंडर के अनुसार पांच दिवसीय वार्षिक त्यौहार मनाया जाता है। उत्सव के छठे दिन को महा षष्ठी, सातवें दिन को महा सप्तमी, आठवें दिन को महा अष्टमी, नौवें दिन को महा नवमी और आखिर में दसवें दिन को विजयदश्मी के रूप में मनाया जाता है। दुर्गा पूजा का त्यौहार लगभग पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में दुर्गा पूजा को नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। मां दुर्गा के अलावा, देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती, भगवान गणेश और कार्तिकेय की भी उनके बच्चों के रूप में पूजा की जाती हैं।
बिहू
असम में बिहू त्योहार मुख्य रुप से मनाया जाता है। इस त्यौहार में घरों में रखा अनाज लगभग खत्म हो जाता है, इसलिये असमी लोग अनाज भंडार, तुलसी, और धान के खेत के पास मिट्टी का दीया जलाते हैं। बिहू सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। यह त्योहार तीन महत्वपूर्ण सांस्कृतिक कार्यक्रमों के रूप में मनाया जाता है बिहू के तीन प्रकार हैं: रोंगाली बिहू, कोंगाली बिहू और भोगली बिहू। प्रत्येक त्यौहार ऐतिहासिक रूप से धान की फसलों के एक अलग कृषि 'बि' मतलब 'पुछ्ना' और 'हु' मतलब 'देना' और वहीं से बिहू नाम उत्पन्न हुआ। रोंगाली बिहू अप्रैल के महीने में मनाया जाता है, अक्टूबर में काटी बिहू या कोंगाली बिहू मनाया जाता है। ये बिहु हर साल अक्टूबर महीने में आता है। । इस महीने में घरों में रखा अनाज लगभग खत्म हो जाता है, इसलिये असमी लोग अनाज भंडार, तुलसी, और धान के खेत के पास मिट्टी का दीया जलाते हैं। काटी बिहू थोड़ा गंभीरता और विचार विमर्श करने वाला पर्व है। जहां पुरानी फसल का अनाज खत्म हो चुका होता है और लोग अपने देवता की प्रार्थना करते हुए उनसे अच्छी फसल होने की कामना करते हैं। माता लक्ष्मी की मुख्यत: पूजा की जाती है। तथा जनवरी में भोगली बिहू मनाया जाता था। यह उत्सव एक असमिया लोक गीतों का त्यौहार है जहां पारंपरिक रुप से बिहू नृत्य किया जाता है। यह बिहू नृत्य इसकी विशेषता है। यह त्यौहार फसलों का प्रतिक है जो धरती का शुक्रिया अदा करने का एक जरिया है जिसकी वजह से खेती कर अनाज की प्राप्ति होती है। इसे धन्यवाद कहने के लिए यह त्यौहार मनाया जाता है।
ओणम
ओणम दस दिवसीय हिंदू त्योहार है जिसे दक्षिण भारतीय राज्य केरल में अगस्त एवं सितंबर के महीनों के दौरान मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन प्राचीन राजा महाबली घर-घर आते हैं। राजा महाबली ने एक बार केरल पर शासन किया था। उनकी शासनकाल की अवधि को केरल की सुनहरी अवधि के रूप में माना जाता है जब राज्य के हर कोने में सद्भाव, भव्यता और नैतिकता रहती थी। इस त्यौहार में लोग अपने घरों को पुष्लम के नाम से जाना जाने वाले फूलों की कालीन के साथ सजाते हैं और महाबली का स्वागत करते हैं। इस दिन घरों को फूलों से सजाया जाता है और तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। दस दिन तक चलने वाले इस त्योरहार का मुख्यह आकर्षण घर की सजावट और खानपान होता है। ओणम की खास बात ये है कि ये घर में सादगी से मनाया जाता है। देवी देवताओं की पूजा की जाती है और पारंपरिक नृत्य किया जाता है। ओणम के दिन बोट रेस भी की जाती है। लोग स्वादिष्ट भोजन बना उनका स्वाद लेते हैं जिसमें स्वादिष्ट करी और पायसम शामिल हैं।
पोंगल
पोंगल जनवरी में तमिलनाडु में मनाए जाने वाला चार दिवसीय फसल का त्यौहार है। पोंगल का त्योहार कृषि एवं फसल से सम्बन्धित देवताओं को समर्पित है| इस त्योहार का नाम पोंगल इसलिए है,क्योंकि इस दिन सूर्य देव को जो प्रसाद अर्पित किया जाता है वह पोंगल कहलाता है| तमिल भाषा में पोंगल का एक अन्य अर्थ निकलता है "अच्छी तरह उबालना"| पहला दिन भोगी पोंगल के रूप में जाना जाता है, जो एक नए चक्र की शुरुआत को चिह्नित करता है, जब लोग अपनी पुरानी घरेलू चीजों का निपटान करते हैं और उन्हें नए चीजों के साथ बदल देते हैं। दूसरे दिन को पेरुम के रूप में जाना जाता है जो त्यौहार का एक बहुत ही महत्वपूर्ण चरण है। यही वह समय है जब लोग नए कपड़े पहनते हैं, घर सजाने के साथ सूर्य भगवान की पूजा करते हैं। मट्टू पोंगल नामक तीसरे दिन को बोवाइन की पूजा करके विशेषता दी जाती है, जो कि अधिक उत्पादकता के साथ फसल के मौसम को बढ़ाने के लिए माना जाता है। कानम पोंगल के नाम से जाना जाने वाला चौथा या आखिरी दिन एक मजेदार दिन है जब लोग अपने दोस्तों और परिवारों के साथ घूमने जाते हैं। वे गायन, नृत्य, एवं उपहारों का आदान-प्रदान और प्रतियोगिताओं में भाग लेकर आनंद लेते हैं।
क्रिसमस
क्रिसमस पूरे भारत में मुख्य रूप से ईसाईयों द्वारा ईसाई धर्म के संस्थापक लॉर्ड जीसस के जन्म को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है, जो 25 दिसंबर को बेथलेम में पैदा हुए थे। क्रिसमस त्योहार भले ही ईसाई धर्म का होता है, लेकिन पूरे विश्व में सबसे ज़्यादा मनाया जाने वाला त्योहार है | क्रिसमस ईसाई संप्रदाय में मनाया जाने वाला सबसे बड़ा और सबसे पवित्र त्योहार माना जाता है | हर वर्ष दिसम्बर की 25तारीख़ को पूरे विश्व भर में क्रिसमस का यह त्योहार बड़े जोश और उमंग के साथ मनाया जाता है | ईसाई धर्म में 25 दिसम्बर इसलिए भी सबसे पवित्र और शुभ माना जाता है,क्योंकि ईसाई धर्म के संस्थापक भगवान यीशू का जन्म इसी दिन हुआ था | इस दिन ईसाई समुदाय के साथ-साथ अन्य समुदायों के लोग भी चर्च जाते हैं और उत्सव में भाग लेते हैं। क्रिसमस के लोकप्रिय आधुनिक दिन समारोह में क्रिसमस केक, सजावट और चर्चों में आधी रात के समय की गई प्रार्थना एवं उपहारों का आदान-प्रदान शामिल है। इस दिन बच्चों के विशेष रुप से सेंटा क्ल़ोज के रुप में उपहार देने की पंरपरा का पालन किया जाता है। ईसाई समुदाय के लोग इस दिन नए कपड़े पहन चर्च में प्रार्थन करते हैं। इस दिन विशेष पकवान बना कर अपने दोस्तों, रिश्तेदारों के साथ उसे बांट कर आनंद लिया जाता है।
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